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________________ लाहु णियंतिहे लाभ देखते हुए हे सखी हले (लाह) 1/1 (णिय-णियंत--णियंती) वकृ 6/1 (हला) 8/1 [(मूल)-(छेअ) 1/1] (तुम्ह) 6/1 स (हो) भवि 3/1 अक मूलछेउ आधार का नाश आपका हो जायेगा होसइ अव्यय नहीं फिट्टइ पेयवणे दूर होता है श्मशान से इस लोक में गिद्ध गिद्ध (फिट्ट) व 3/1 अक (पेयवण) 7/1 अव्यय (गिद्ध) 1/1 अव्यय (फिट्ट) व 3/1 अक (पंकअ) 7/1 (भिंग) 1/1 (पइट्ठ) भूकृ 1/1 अनि फिट्टइ नहीं दूर होता है कमल में भौंरा पकए भिंगु घुसा हुआ नहीं फिट्टइ तुंबरणारयगेउ अव्यय (फिट्ट) व 3/1 अक [(तुबर)-(णारय)-(गेअ) 1/1] अव्यय (फिट्ट) व 3/1 अक छूटता है नारद के तंबूरे का गीत नहीं नष्ट होता है फिट्टइ कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-136) 275 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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