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काट ली गई
पुच्छ-सकण्णउ
(लुअ) भूकृ 1/1 अनि [(पुच्छ)-(स-कण्णअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (चिंत) व 3/1 सक (जंबुअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक
चिंतइ जंबुङ अज्ज
पूँछ, कान सहित सोचता है (सोचा) गीदड़
अव्यय
आज
भी
अव्यय (धण्णअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
धण्णउ
भाग्यशाली
जीवेसमि
अपुच्छु विणु कण्णहिं
(जीव) भवि 1/1 अक (अपुच्छ) 1/1 वि अव्यय
(कण्ण
) 3/2
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जी लूँगा पूँछरहित बिना कानों से (केवल) एक बार यदि छूटता हूँ (छूट जाऊँ) पुण्यों से
एक्कवार
अव्यय
जई
अव्यय
छुट्टमि पुण्णहिँ
(छुट्ट) व 1/1 अक (पुण्ण) 3/2
10.
बोल्लइ
बोलता है (बोला) अन्य
अवरु
एक
एक्कु कामुयजणु गेण्हमि
(बोल्ल) व 3/1 सक (अवर) 1/1 वि (एक्क) 1/1 वि [(कामुय) वि-(जण) 1/1] (गेण्ह) व 1/1 सक (दंत) 2/1 (कर) व 1/1 सक (वस) 7/1 वि [(पिया पिय)-(मण) 2/1]
कामुक मनुष्य लेता हूँ
दाँत
करमि
वसि..
करता हूँ (करूँगा) वश में प्रिया के मन को
पियमणु
1. 2.
बिना के योग में तृतीया हुई है। समास में दीर्घ का ह्रस्व हो जाया करता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4)
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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