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________________ निग्रह किया गया (है)? किसके द्वारा सकल परिग्रह समाप्त किया गया (है)? (9) कौन वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे बसा (है)? कौन शीतकाल में केवलमात्र शरीर से रहा (है)? (10) किसके द्वारा ग्रीष्मकाल में शरीर का तपन किया गया (है)? यह तप का आचरण भीषण होता है। ___घत्ता - हे भरत! तू बढ़कर मत बोल। (तू) आज भी वह (ही) बालक (है)। विषयसुखों को भोग। (यह) प्रव्रज्या का कौनसा काल (है)? 24.5 __(1) उसको सुनकर भरत क्रुद्ध (रुष्ट) हुआ। मस्त हाथी की तरह चित्त में दुःखी हुआ। (2) (भरत ने कहा कि हे पिता) तब आपके द्वारा प्रतिकूल (विरोधी) वचन कहे गए। क्या बालक के लिए तप का आचरण उचित (युक्त) नहीं है? (3) क्या बालपन सुखों के द्वारा नहीं ठगा जाता है? क्या बालक के लिए दया एवं धर्म रुचिकर नहीं होता है? (4) क्या बालक के लिए प्रव्रज्या नहीं हुई? क्या बालक का परलोक दूषित (नहीं) (होता)? (5) क्या बालक के लिए सम्यक्त्व नहीं हुआ? क्या बालक के लिए इष्ट वियोग नहीं (हुआ)? (6) क्या बालक के लिए जरामरण नहीं आता है? क्या बालक के लिए यमराज दिन भूल जाता है? (7) उसको सुनकर (राजा के द्वारा) भरत झिड़का गया (कि) तब (तुम्हारे द्वारा) पहले राजपट्ट (सिंहासन) क्यों स्वीकार किया गया? (8) इस समय (तो) (तुम्हारे द्वारा) सम्पूर्ण राज ही किया जाना चाहिये (और) (जीवन के) पिछले भाग में फिर तप का आचरण किया जाना चाहिये। ___ घत्ता - इस प्रकार कहकर पत्नी के वचन को पूरा करके (और) भरत को अपभ्रंश काव्य सौरभ 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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