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________________ घत्ता - 16 पाठ 3 पउमचरिउ Jain Education International सन्धि तो तिणि वि एम चवन्ताइँ दिण पच्छिम - पहरें विणिग्गयाइँ वित्थिष्णु रण्णु पइसन्ति जाव गुरु वेसु करेंवि सुन्दर-सराइँ वुक्कण-किसलय कक्का रवन्ति वण - कुक्कुड कुक्कू आयरन्ति पियमाहवियर को - क्कउ लवन्ति सो तरुवरु गुरु- गणहर- समाणु - 27 वरि पहरिउ वरि किउ तवचरणु वरि विसु हालाहलु वरि मरणु । वरि अच्छिउ गम्पिणु गुहिल - वर्णे णवि णिविसु वि णिवसिउ अवुहयर्णे ' ॥ 9 ॥ 27.14 27.15 उम्माहउ जहाँ जणन्ताइँ ॥ 1 ॥ कुञ्जर इव विउल - वणहो गयाइँ ॥ 2 ॥ गोहु महादुमुदि ताव ॥3॥ णं विहय पढावइ अक्खराइँ ॥ 4 ॥ वाउलि-विहङ्ग कि- क्की भणन्ति ॥5॥ अणुवि लावि - क्कइ चवन्ति ॥6॥ कंका वप्पीह समुल्लवन्ति ॥ 7 ॥ फल-पत्त-वन्तु अक्खर - णिहाणु ॥ 8 ॥ For Private & Personal Use Only अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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