SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुरहियाँ तूरई वारियाई (तूर) 1/2 (वार) भूकृ 1/2 रोकी गई उसको णिसुणिवि धारापहसियाई करवालई कोसि णिवेसियाई (त) 2/1 स (णिसुण+इवि) संकृ [(धारा)-(पहस) भूकृ 1/2] (करवाल) 1/2 (कोस) 7/1 (णिवेस) भूकृ 1/2 सुनकर धारों का उपहास की हुई तलवारें म्यान में रख दी गई उसको णिसुणिवि णिद्धंगई सुनकर कान्तियुक्त घटकवाले (त) 2/1 स (णिसुण+इवि) संकृ [(णिद्ध)+(अंगई) [[(णिद्ध) भूक अनि-(अंग) 1/2] वि] (घण) 1/2 (णिमुक्क) भूकृ 1/2 अनि [(कवय)-(णिबंधण) 1/2] घणाई णिम्मुक्कई कवयणिबंधणाई खोल दिए गए कवचों के बन्धन उसको णिसुणिवि मय-मायंग रुद्ध पडिगयवरगंधालुद्ध (त) 2/1 स (णिसुण+इवि) संकृ [(मय)-(मायंग) 1/2] (रुद्ध) भूकृ 1/2 अनि [(पडिगय)-(वर)-(गंध-गंधा)-(लुद्ध) भूकृ 1/2 अनि] (कुद्ध) भूक 1/2 अनि सुनकर मदवाले हाथी रोक लिये गए प्रतिपक्षी, श्रेष्ठ, गंध के इच्छुक क्रुद्ध कुद्ध उसको णिसुणिवि मच्छरभावभरिय (त) 2/1 स (णिसुण+इवि) संकृ [(मच्छर)-(भाव)-(भर) भूक 1/2] (हरि) 1/2 सुनकर ईर्ष्याभाव से भरे हुए घोड़े हरि 237 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy