SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3. क्व कंदरमंदिरु ह वर तं सुन्दरु 4. वर दालिदु सरीरहु दंड णउ पुरिसहु अहिमाणविहंड 5. परपयरयधूसर किंकरसरि अ ण पाउससिरिहरि 6. णिवपडिहारदंडसंघट्टणु को विसहर करेण उरलोट्टणु 211 Jain Education International [(वक्कल) - (णिवसण) 1 / 1 ] [(कंदर) - (मंदिर) 1/1] [ ( वण) - (हल) - (भोयण) 1 / 1] (वर) 1 / 1 वि अव्यय (सुन्दर) 1 / 1 वि (वर) 1 / 1 वि (दालिद्द) 1/1 ( सरीर) 4/1 (दंडण) 1 / 1 अव्यय ( पुरिस) 6 / 1 [ ( अहिमाण) - (विहंडण ) 1 / 1 ] [ ( पर) वि - ( पय) - (राय) - ( धूसर - धूसरा ) 1 / 1 वि] [ ( किंकर) - (सरि) 1 / 1] ( असुहाविणी) 1 / 1 वि [ ( णिव) - ( पडिहार) - (दंड)(संघट्टण ) 2 / 1] (क) 1/1 सवि (वि-सह) व 3 / 1 सक (कर) 3/1 [ ( उर) - ( लोट्टण ) 1 / 1] वृक्ष For Private & Personal Use Only की छाल का वस्त्र में घर गुफा जंगल के फलों का भोजन श्रेष्ठ पादपूरक अच्छा श्रेष्ठ निर्धनता शरीर के लिए दण्ड देना नहीं व्यक्ति के स्वाभिमान का खण्डन अव्यय [ ( पाउस) - (सिरिहर - सिरिहरी ) 1 / 1 वि] वर्षाऋतु की शोभा को हरनेवाली दूसरे के पैरों की धूल पी सेवकरूपी नदी असुन्दर मानो से राजा के द्वारापालों के डण्डों का संघर्षण कौन सहता है (सहेगा ) हाथ से छाती पर प्रहार अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy