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________________ चन्दणेण (चन्दण) 3/1 (विलिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि चन्दन से लीपी जाती है विलिप्पइ धुज्जइ धोया जाता है पाउ पाँव कीचड़ जइ यदि लग्गइ (धुज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि (पाअ) 1/1 (पङ्क) 1/1 अव्यय (लग्ग) व 3/1 अक [(कमल)-(माला) 1/1] अव्यय (जिण) 6/1 (वलग्ग) व 3/1 अक लगता है कमलमाल कमल की माला पुणु जिणहो किन्तु जिनेन्द्र के वलग्गइ चढ़ती है दीवउ दीपक होता है स्वभाव से सहावे कालउ वट्टि-सिहए मण्डिज्जइ (दीवअ) 1/1 (हो) व 3/1 अक (सहाव) 3/1 (कालअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(वट्टि)-(सिहा) 3/1] (मण्ड) व कर्म 3/1 सक (आलअ) 1/1 काला बत्ती (वर्तिका) की शिखा से सुशोभित किया जाता है घर, आलय आलउ णर-णारिहिँ नर और नारी में एवड्डउ इतना अन्तरु अन्तर मरणे मरने पर [(णर)-(णारी) 7/2] (एवड्ड+अ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (अन्तर) 1/1 वि (मरण) 7/1 अव्यय (वेल्लि ) 1/1 अव्यय (मेल्ल) व 3/1 सक वि भी वेल्लि बेल ण नहीं मेल्लइ छोड़ती है अपभ्रंश काव्य सौरभ 200 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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