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________________ आदर किया जाता है गणिज्जइ गङ्गा-णइहिँ गंगा नदी में (गण) व कर्म 3/1 सक [(गङ्गा)-(णइ) 7/1] (त) 1/1 स अव्यय (ण्हा) प्रे व कर्म 3/1 सक वह पहाइज्जइ नहलाया जाय 2. ससि स-कलंकु तहिं। चन्द्रमा कलंक-सहित उससे पादपूरक पह प्रभा णिम्मल निर्मल (ससि) 1/1 (स-कलंक) 1/1 (त) 6/1 स अव्यय (पहा) 1/1 (णिम्मला) 1/1 वि (कालअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (मेह) 1/1 (त) 6/1 स अव्यय (तडि) 1/1 (उज्जल) 1/1 वि कालउ काला बादल, मेघ उससे तहिं। जे तडि पादपूरक बिजली श्वेत/उज्ज्वल उज्जल उवलु पत्थर अपुज्जु (उवल) 1/1 (अपुज्ज) 1/1 वि अव्यय अपूज्य नहीं किसी के द्वारा भी केण (क) 3/1 स अव्यय छिप्प (छिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि छुआ जाता है तहिँ (त) 6/1 स उससे जि अव्यय पडिम 1. (पडिमा) 1/1 प्रतिमा कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पंचमी विभक्ति के स्थान पर किया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) 199 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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