SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डज्झइ मारुउ (डज्झइ) व कर्म 3/1 सक अनि अव्यय (मारुअ) 1/1 [(पड)-(पोट्टल) 7/1] (वज्झइ) व कर्म 3/1 सक अनि जलाई जाती है यदि हवा कपड़े की पोटली में बाँधी जाती है पड-पोट्टले वज्झइ जइ पायाले णहङ्गणु लोट्टई कालान्तरेण अव्यय यदि (पायाल) 7/1 पाताल में [(णह+अङ्गणु)] [(णह)-(अङ्गण) 1/1] नभ-आंगन (आकाश) (लोट्ट) व 3/1 अक लोटता है [(काल)+(अन्तरेण)] [(काल)-(अन्तर) 3/1] समय बीतने से (काल) 1/1 अव्यय यदि (तिट्ठ) व 3/1 अक ठहर जाता है कालु काल जइ ति 6. जइ अव्यय यदि उप्पज्जइ. उत्पन्न होत है मरण मरणु कियन्तहो यमराज का जइ (उप्पज्ज) व 3/1 अक (मरण) 1/1 (कियन्त) 6/1 अव्यय (णास) व 3/1 अक (सासण) 1/1 (अरहन्त) 6/1 यदि णासइ नष्ट होता है शासन सासणु अरहन्तहो अरहन्त का जइ अव्यय यदि अवरें (अवर) 3/11 (उग्गम) व 3/1 अक पश्चिम दिशा में उगता है उग्गमइ 1. कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137)। अपभ्रंश काव्य सौरभ 192 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy