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83.4
तहिँ अवसरे रयणासव-जाएं कोक्किय
(त) 7/1 स (अवसर) 7/1 [(रयणासव)-(जाअ) भूक 3/1 अनि] (कोक्क-कोक्किया) भूकृ 1/10 (तियडा) 1/1 [(विहीसण)-(राअ) 3/1]
उस (पर) अवसर पर रत्नाश्रव के पुत्र (द्वारा) बुलाई गई त्रिजटा विभीषण राजा के द्वारा
तियड विहिसण-राएं
2.
बोल्लाविय एत्तहे
[(बोल्ल+आवि) प्रे. भूक 1/1] अव्यय
बुलवाई गयी यहाँ पर
अव्यय
तुरन्तें
लङ्कासुन्दरि तो
क्रिवि (लंकासुन्दरी) 1/1 अव्यय (हणुवन्त) 3/1
तुरन्त लंकासुन्दरी तब हनुमान के द्वारा
हणुवन्तें
3.
विण्णि
दोनों
वि
विण्णवन्ति पणमन्तिउ सीय-सइत्तण
(विण्ण-विण्णी) 1/1 वि अव्यय (विण्णव) व 3/2 सक (पणम-पणमन्त-पणमन्ती) वकृ 1/2 [(सीया)-(सइत्तण) 6/1] (गव्व) 2/ (वह-वहन्त-वहन्ती) वकृ 1/2
कहती हैं प्रणाम करती हुई सीता के सतीत्व के गर्व को धारण करती हुई
गव्वु
वहन्तिउ
देव देव
हे देव, हे देव
जइ
(देव) 8/1 अव्यय (हुअवह) 1/1
यदि
हुअवहु
अग्नि
191
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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