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________________ झत्ति णिच्चेयणु भाइ-विओएं जिह - जिह करइ विहीसणु सोउ तिह - तिह दुखण रुवइ स- हरि-वल-वार- लोउ 1. दुम्मणु दुम्मण-वयणउ अंसु - जलोल्लिय - णयणउ कद्धय सत्थ जहिँ रावणु 177 Jain Education International अव्यय ( णिच्चेयण) 1 / 1 वि सन्धि - 77 [ (भाइ) - (विओअ ) 3 / 1] अव्यय (कर) व 3 / 1 सक (विहीसण) 1 / 1 (सोअ) 2/1 अव्यय ( दुक्ख ) 3/1 (रुव) व 3 / 1 अक [ ( स ) - (हरि) - ( वल) - ( वाणर) - (लोअ) 1 / 1 ] 77.1 (दुम्मण) 1 / 1 वि [[ ( दुम्मण) वि - ( वयणअ) 1 / 1 'अ' स्वार्थिक] वि] [(अंसु) + (जल) + (उल्लिय) + (णयणउ )] [[(अंसु)-(जल)-(उल्ल - उल्लिय) भूक- (णयणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक] वि] (ढुक्क) 1 / 1 वि (दे) [ ( कइद्धय ) - ( सत्थअ) 1 / 1 'अ' स्वार्थिक] अव्यय (रावण) 1 / 1 For Private & Personal Use Only शीघ्र चेतना - रहित भाई के वियोग से जैसे-जैसे करता विभीषण शोक वैसे-वैसे दुःख के कारण रोते राम, लक्ष्मण सहित वानर जाति के लोग दु:खी मन उदास मुखवाला आँसु के जल से गीली हुई आँखोंवाला पहुँचा कपि (चिह्नयुक्त) ध्वज (लिए हुए) जन-समूह जहाँ रावण अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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