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________________ वहुल-पओसु कृष्णपक्ष, दोषों से युक्त जैसे तारा-पन्तिहिँ तेम [(वहुल)-(पओस) 1/1 वि] अव्यय [(तारा)-(पन्ति) 3/2] अव्यय [(दस)+(आस) + (पासु) 1/1] [(दस) वि-(आस)-(पास) 1/1] (ढुक्क-ढुक्कंत-दुक्कंती) वकृ 3/2 तारों की पंक्तियों द्वारा उसी प्रकार दसमुखवाले के पास दसास-पासु ढुक्कन्तिहिँ जाती हुई (रानियों) के द्वारा 8. दस-सिरु दस-सेहरु दस-मउडउ दससिर दसशिखा [(दस) वि-(सिर) 1/1] [(दस) वि-(सेहर) 1/1] [(दस) वि-(मउड-अ) _1/1 'अ' स्वार्थिक] (गिरि) 1/1 अव्यय (स-कन्दर) 1/1 वि (स-तरु) 1/1 वि (स-कूडअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक दसमुकुट पर्वत गिरि मानो स-कन्दरु स-तरु गुफा-सहित वृक्ष-सहित शिखर-सहित स-कूडउ 9. णिएवि देखकर अवस्था को अवत्थ दसाणणहो हा हा सामि रावण की हाय-हाय स्वामी भणन्तु स-वेयणु अन्तेउरु मुच्छा-विहलु णिवडिउ महिहिँ (णिअ+एवि) संकृ (अवत्था) 2/1 (दसाणण) 6/1 अव्यय (सामि) 1/1 (भण-भणन्त) वकृ 1/1 (स-वेयण) 1/1 वि (अन्तेउर) 1/1 [(मुच्छा )-(विहल) 1/1] (णिवड-णिवडिअ) भूकृ 1/1 (महि) 7/1 कहते हुए पीड़ा सहित अन्तःपुर मूर्छा से व्याकुल गिरा पृथ्वी पर अपभ्रंश काव्य सौरभ 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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