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व्व
जरढ-मयलञ्छणु विज्जुहि
व्व
छुडु - छुड
वरिसिय घणु
4.
अमर-हू
व
चवण- पुरन्दरु गिम्भ - दिसाहिँ
व
अञ्जन-महिहरु
5.
भमराव लिहि
म्व
सूडिय-तरुवरु
कलहंसीहि
म्व
अजलु
महासरु
6.
कलयण्ठीहि
म्व
माहव- णिग्गमु
णाइणिहिँ
व
हय-गरुड - भुयङ्गमु
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अव्यय
[ ( जरढ) वि- (मयलञ्छण) 1 / 1 ]
(fay) 3/2
अव्यय
अव्यय
[ ( वरिस - वरिसिय) भूक - ( घण) 1 / 1 ]
[ ( अमर ) - (वहू) 3 / 2]
अव्यय
[(चवण) - ( पुरन्दर) 1 / 1 वि]
[ (गिम्भ ) - (दिसा ) 3 / 2]
अव्यय
[ ( अञ्जण) - (महिहर) 1 / 1]
[ (भमर) + (आवलिहि) ]
[ (भमर) + (आवलि) 3/2]
अव्यय
[ ( सूड - सूडिय) भूकृ (तरुवर) 1 / 1 ]
[ ( कलहंस
(स्त्री) कलहंसी) 3/2]
अव्यय
-
( अजल) 1 / 1 वि
[(महा) वि (सर) 1 / 1 ]
( कलयण्ठी) 3/2
अव्यय
[ ( माहव ) - (णिग्गम) 1 / 1 ]
(णाइणी) 3/2
अव्यय
[(हय) भूक अनि - (गरुड) - (भुयङ्गम) 1 / 1 ]
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जैसे
क्षीण चन्द्रमा
बिजलियों द्वारा
जैसे
पुनः पुनः
बरसा हुआ बादल
देवताओं की स्त्रियों द्वारा
जैसे
मरण को प्राप्त इन्द्र
ग्रीष्म
जैसे
वृक्षों
दिशाओं द्वारा
युक्त पर्वत
भँवरों की पंक्तियों द्वारा
जैसे
नाश को प्राप्त, राजहंसनियों द्वारा
जैसे
जलरहित
बड़ा तालाब
कोकिलों द्वारा
जैसे
श्रेष्ठ वृक्ष
वसन्त ऋतु का जाना नागिनियों द्वारा
जैसे
गरुड से मारा हुआ सर्प
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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