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जीवाउ वाउ हय हय वराय तणु तणु जें खणखें खयहों जाइ दुहिया वि दुहिय माया वि माय
सन्दण सन्दण गय गय जें णाय॥6॥ धणु धणु जि गुणेण वि वकु थाइ॥7॥ सम-भाउ लेन्ति किर तेण भाय॥8॥
घत्ता
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आयइँ अवरइ मि अप्पुणु तउ करमि'
सव्वइँ राहवहाँ समप्पेंवि। थिउ दसरहु एम वियप्पेंवि॥
22.7
घत्ता
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दसरहु अण्ण-दिणे केक्कय ताव मणे
किर रामहो रज्जु समप्पइ। उण्हालएँ धरणि व तप्पड़॥
22.8
णरिन्दस्स सोऊण पव्वज्ज-यज्जं ससा दोणरायस्स भग्गाणुराया गया केक्कया जत्थ अत्थाण-मग्गो वरो मग्गिओ ‘णाह सो एस कालो 'पिए होउ एवं' तओ सावलेवो
स-रामाहिरामस्स रामस्स रज्जं॥1॥ तुलाकोडि-कन्ती-लयालिद्ध-पाया॥2॥ णरिन्दो सुरिन्दो व पीढं वलग्गो॥6॥ महं णन्दणो ठाउ रज्जाणुपालो'॥7॥ समायारिओ लक्खणो रामएवो॥8॥
घत्ता -
'जइ तुहुँ पुत्तु महु छत्तइँ वइसणउ
तो एत्तिउ पेसणु किज्जइ। वसुमइ भरहहों अप्पिज्जई॥
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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