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सु-गाढउ
(सु-गाढअ) 2/1 वि 'अ' स्वार्थिक (जाण) व 3/1 सक (लक्खण) 2/1
खूब गाढ़ा समझती है
जाणइ
लक्खणु
लक्ष्मण
8.
कावि णारि
कोई नारी जिस(को) देखती है दर्पण को
जोयइ
दप्पणु
(का) 1/1 सवि (णारी) 1/1 (ज) 2/1 सवि (जोय) व 3/1 सक (दप्पण) 2/1 (अण्ण) 2/1 वि अव्यय (पेक्ख) व 3/1 सक (मेल्ल+एवि) संकृ (लक्खण) 2/1
अण्णु
अन्य को
ण
नहीं देखती है
पेक्खइ
मेल्लेवि
छोड़कर
लक्खणु
लक्ष्मण को
अव्यय
एत्थन्तरे पाणिय-हारिउ
अव्यय (पाणियहारी) 1/2 (पुर) 7/1 (वोल्ल) व 3/2 सक क्रिवि (णारी) 2/2
तब इसी बीच में पनिहारिने नगर में बोलती हैं (कहती हैं) आपस में नारियों को
वोल्लन्ति परोप्पर णारिउ
10.
वह पलंग
वह
(त) 1/1 सवि (पलक) 1/1 . (त) 1/1 सवि
अव्यय (उवहाणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (सेज्ज) 1/1 अव्यय
उवहाणउ
तकिया
सेज्ज
शय्या
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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