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पणवेप्पिणु तेण वि वुत्तु एम पढमाउसु जर धवलन्ति आय गइ तुट्टिय विहडिय सन्धि-वन्ध सिरु कम्पइ मुहें पक्खलइ वाय परिगलिउ रुहिरु थिउ णवर चम्मु गिरि-णइ-पवाह ण वहन्ति पाय वयणेण तेण किउ पहु-वियप्पु 'सच्चउ चलु जीविउ कवणु सोक्खु
'गय दियहा जोव्वणु ल्हसिउ देव॥1॥ पुणु असइ व सीस-वलग्ग जाय ॥2॥ ण सुणन्ति कण्ण लोयण णिरन्ध ॥3॥ गय दन्त सरीरहों णट्ठ छाय॥4॥ महु एत्थु जे हुउ णं अवरु जम्मु॥5॥ गन्धोवउ पावउ केम राय'॥6॥ गउ परम-विसायों राम-वप्पु॥7॥ तं किज्जइ सिज्झइ जेण मोक्खु॥8॥
घत्ता -
सुहु महु-विन्दु-समु वरि तं कम्मु किउ
दुहु मेरु-सरिसु पवियम्भइ। जं पउ अजरामरु लब्भइ॥
22.3
कं दिवसु वि होसइ आरिसाहुँ को हउँ का महि कहों तणउ दव्वु जोव्वणु सरीरु जीविउ धिगत्थु विसु विसय बन्धु दिढ-वन्धणाइँ सुय सत्तु विढत्तउ अवहरन्ति
कञ्चुइ-अवत्थ अम्हारिसाहुँ।1।। सिंहासणु छत्तइँ अथिरु सव्वु।।2।। संसारु असारु अणत्थु अत्थु ॥3॥ घर दारइँ परिहव-कारणाइँ।।4।। जर-मरणहँ किङ्कर किं करन्ति ॥5॥
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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