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सन्धि 22
अपने घर पहुँचे हुए कोशलनन्दन ( अयोध्या के (राज) पुत्र राजा राम के द्वारा पत्नी सहित अषाढ़ की अष्टमी के दिन जिनेन्द्र का अभिषेक किया गया।
पाठ - 1
पउमचरिउ
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(1) देवताओं के साथ हजारों युद्धों में कठिनाई से मारे जानेवाले दशरथ के द्वारा (भी) जिनेन्द्र का अभिषेक किया गया । ( 2 ) ( अभिषेक के पश्चात् ) जिनेश्वर के तन को धोनेवाला दिव्य गन्धोदक ( सुगन्धित जल ) देवियों ( राज - पत्नियों) के लिए (कञ्चुकी के साथ) भेजा गया । ( 3 ) कञ्चुकी केवल (रानी) सुप्रभा के पास नहीं पहुँचा । हर्ष से पुलकित शरीरवाला स्वामी (राजा) कहता है- (4) “हे (सुडोल ) स्त्री ! कहो (तुम) मन में दु:खी क्यों (हो) ? (और) पुरानी चित्रित भीत की तरह स्थिर (और) निस्तेज (क्यों हो ) ? ( 5 ) ( राजा को ) प्रणाम करके सुप्रभा के द्वारा कहा जाता है- हे प्रभु! मेरे सम्बन्ध में चर्चा से क्या (लाभ) ? ( 6 ) हे देव! यदि मैं (सुप्रभा) भी इस प्रकार ( आपके लिए) प्राणों से प्यारी (होती), तो गन्धोदक क्यों नहीं पाती? (7) उसी समय पर कञ्चुकी (जिसका ) मुख शरद (ऋतु) की पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह ( वृद्धावस्था के द्वारा ) निरन्तर सफेद किया गया ( था ) । (8) (जिसका ) दन्त (-समूह) टूट गया (था), (जो) जड़ (था), (जिसके) हाथ में लकड़ी (थी), (जिसके द्वारा) पथ नहीं देखा गया, (जिसकी ) वाणी लड़खड़ाती हुई ( थी) (सुप्रभा के ) पास पहुँचा ।
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22.1
घत्ता
दशरथ के द्वारा (कञ्चुकी) निन्दा किया गया ( और कहा गया कि ) हे कञ्चुकी! तुम्हारे द्वारा देर क्यों की गई ? ( जिससे) सुप्रभा के द्वारा जिन-वचन के सदृश गन्धोदक शीघ्र नहीं पाया गया ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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