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महं
णन्दणो
ठाउ
2 4 2 4:0
8.
पिए
होउ
एवं
तओ
सावलेवो
समायारिओ
लक्खणो
रामवो
9.
जइ
तुहुँ
पालो
E
एत्तिउ
पेणु
किज्जइ
छत्तइँ
वइसणउ
वसुमइ
भरहहो
अप्पिज्जइ
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( अम्ह ) 6 / 1 स
( णन्दण) 1 / 1
(ठा) विधि 3 / 1 अक
[ (रज्ज) + (अणुपालो)] [ ( रज्ज) - (अणुपाल ) 1 / 1 वि]
(पिआ ) 8 / 1
(हो) विधि 3 / 1 अक
अव्यय
अव्यय
(स+अवलेव) 1/1
(सं+आयार आयारिअ - समायारिअ )
भूकृ 1/1
( लक्खण) 1/1
(राम) 1 / 1, एवो - अव्यय
अव्यय
(तुम्ह) 1 / 1 स
(पुत्त) 1 / 1
( अम्ह ) 6 / 1 स
अव्यय
(एत्तिअ) 1 / 1 वि
(पेसण) 1/1
( किज्जइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि
(छत्त) 1 / 2
( वइसणअ) 1 / 1
(वसुमइ) 1/1
(भरत) 4 / 1
(अप्प्र ) व कर्म 3 / 1 सक
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मेरा
पुत्र
राज्य का पालनकर्ता
प्रिय
होवे
इसी प्रकार
तब
गर्वसहित
बुलाए गए
लक्ष्मण
राम, और
यदि
तुम
मेरे
तो
इतनी
आज्ञा
पालन की जाए
(की जाती है)
छत्र
आसन
पृथ्वी
भरत के लिए
दी जाती है (दे दी जाए)
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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