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________________ स-रामाहिरामस्स [(स)+ (रामा)+(अहिरामस्स)] (स) वि-(रामा)-(अहिराम) 4/1 वि] (राम) 4/1 (रज्ज) 2/1 पत्नीसहित, आकर्षक राम के लिए राज्य को रामस्स रज्ज ससा दोणरयस्स भग्गाणुराया (ससा) 1/1 बहिन (दोणराय) 6/1 द्रोणराजा की [(भग्ग)+(अणुराया)] टूट गया, स्नेह [(भग्ग) भूकृ अनि-(अणुराया) 1/1 वि] [[(तुलाकोडि)-(कन्ति-कन्ती) नूपुरों से, (लया)-(लिद्ध) भूक अनि कान्तिसहित, (पाय) 1/2] वि] लतारूपी, लिपटे हुए, पैर तुलाकोडि-कन्तीलयालिद्ध-पाया गया गयी कैकेयी केक्कया जत्थ जहाँ (गय- (स्त्री) गया) भूकृ 1/1 अनि (केक्कया) 1/1 अव्यय [(अत्थाण)-(मग्ग) 1/1] (णरिन्द) 1/1 (सुरिन्द) 1/1 अत्थाण-मग्गो सभास्थान का पथ णरिन्दो राजा सुरिन्दो अव्यय की तरह पीढ़ वलग्गो (पीढ) 2/1 (वलग्ग) 1/1 वि (दे) आसन पर स्थित 7. वरो मग्गिओ वर माँगा हुआ हे नाथ णाह (वर) 1/1 (मग्ग) भूकृ 1/1 (णाह) 8/1 (त) 1/1 सवि (एत) 1/1 सवि (काल) 1/1 वह एस यह कालो . समय 1. कभी-कभी द्वितीया का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) अपभ्रंश काव्य सौरभ 134 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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