SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जर मरणहँ किङ्कर किं करन्ति 6. जीवाउ B R R E E E EEEE वाउ हय वराय सन्दण गय गय जे णाय 7. तणु तणु खणद्धे खग्रहो जाइ धणु 1. ܕ 2. 3. 4. 131 [ ( जरा-जर) - ( मरण) 6 / 1 ] 2 ( किङ्कर) 1/2 (क) 1 / 1 सवि (कर) व 3 / 2 सक Jain Education International [(जीव) + (आउ)] [ (जीव ) - ( आउ) 1 / 1] (वाउ) 1 / 1 ( हय) 1/2 ( हय) भूकृ 1 / 2 अनि ( वराय) 1 / 2 वि (सन्दण) 1/2 (सन्दण) 1/2 वि ( गय) भूक 1 / 2 अनि ( गय) भूकृ 1 / 2 अनि अव्यय [ (ण) + (आय) ] ण (अव्यय) आय (आय) भूकृ 1/2 अनि ( तणु) 1 / 1 ( तण ) 1 / 1 अव्यय (खणद्ध) 3 / 1 (खय) 6 / 1 (जा) व 3 / 1 सक ( धण) 1 / 1 बुढ़ापे और मरण के अवसर पर For Private & Personal Use Only नौकर-चाकर क्या करते हैं जीव की आयु हवा घोड़े मारे गए बेचारे रथ टूटनेवाले मरे हुए गए ही नहीं लौटे སྠཽ ཛྱཱ ཝཱ ཝཱ तृण ही आधे क्षण में श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151 कभी-कभी षष्ठी का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134 ) कभी-कभी सप्तमी के अर्थ में तृतीया प्रयुक्त होती है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) कभी-कभी षष्ठी द्वितीया के अर्थ में प्रयुक्त होती है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) अपभ्रंश काव्य सौरभ क्षय को प्राप्त होता है धन www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy