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महु-बिन्दु-समु दुहु मेरु-सरिसु पवियम्भइ
मधु की बिन्दु के समान दुःख मेरु पर्वत के समान लगता है
वरि
अच्छा
(सुह) 1/1 [(महु)-(विन्दु)-(सम) 1/1 वि] (दुह) 1/1 [(मेरु)-(सरिस) 1/1 वि (पवियम्भ) व 3/1 अक अव्यय (त) 1/1 सवि (कम्म) 1/1 (किअ) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (पउ) 1/1 [(अजर) वि-(अमर) 1/1 वि] (लब्भइ) व कर्म 3/1 सक अनि
वह
कम्मु किउ
कर्म किया हुआ जिससे
पउ
पद
अजरामरु
अजर-अमर प्राप्त किया जाता है
लब्भइ
22.3
किसी
(क) 1/1 सवि (दिवस) 1/1
दिवसु
दिन
वि
अव्यय
होसइ आरिसाहुँ कञ्चुइ-अवत्थ अम्हारिसाहुँ
(हो) भवि 3/1 अक (आरिस) 6/2 वि [(कञ्चुइ)-(अवत्था) 1/1] (अम्हारिस) 6/2 वि
होगी ऐसे (लोगों) के कञ्चुकी की अवस्था हम जैसों की
कौन
6 *2.
(क) 1/1 सवि (अम्ह) 1/1 स (का) 6/1 सवि (मही) 1/1
किसकी पृथ्वी
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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