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गिरि-णइ-पवाह
[(गिरि)-(णइ)-(पवाह) 2/1]
पर्वतीय नदी के (समान) प्रवाह को
अव्यय
नहीं
वहन्ति
धारण करते हैं
पाय
गन्धोवउ
गन्धोदक को
(वह) व 3/2 सक (पाय) 1/2 (गन्धोवअ) 2/1 (पाव) विधि 3/1 सक अव्यय (राय) 8/1
पावउ
पावे
केम
किस प्रकार हे राजा
राय
7.
वयणेण
कथन से
तेण
उस
किया गया
(वयण) 3/1 (त) 3/1 सवि (किअ) भूकृ 1/1 अनि [(पहु)-(वियप्प) 1/1] (गअ) भूक 1/1 अनि [(परम) वि-(विसाय) 6/1] [(राम)-(वप्प) 1/1]
किर पहु-वियप्पु गउ परम-विसायहो राम-वप्पु
राजा के द्वारा विचार
प्राप्त हुए अत्यन्त दुःख को राम के पिता
8.
सच्चउ
सत्य
चलु
चंचल
जीविउ
जीवन कौनसा
कवणु सोक्खु
सुख
(सच्चअ) 1/1 (चल) 1/1 वि (जीविअ) 1/1 (कवण) 1/1 सवि (सोक्ख) 1/1 (त) 1/1 स (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि (सिज्झ) व 3/1 अक (ज) 3/1 स (मोक्ख) 1/1
वह
किज्जइ
सिज्झइ
अनुभव किया जाता है सिद्ध होता है जिससे मोक्ष
जेण मोक्खु
1.
कभी-कभी द्वितीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग किया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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