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९८/पार्श्वपुराण
न्हौन-छटा तिरछी भई, तिन यह उपमा धार ।। दिगवनिता-मुख सोहियै, करनफूल उनहार ||७०।।
सोरठा ।
जिन-तन-परस पवित्त, भई सकल जग-सुचिकरन || सो धारा मम नित्त, पाप हरो पावन करो ||७१||
चौपाई। यों सुरेंद्र मज्जनबिधि ठान । फिर कीनौं गंधोदक न्हान ।। सो जल लेय विनय विस्तरी सांतिपाठ पढ़ि पूजा करी ||७२।। सक्र सची सुर आनंद भरे । यथाजोग सब कारज करे ।। परदच्छिन दीनी बहुभाय । बारंबार नये सिरनाय ||७३।।
हरिगीत । सौधर्मपति अभिषेक कारक, न्हौनपीठ सुदंसनो । गंधर्व गायक निरतकारक, अपछरा-जन संसनो ॥ पंचम पयोनिध न्हौन-कुंड, असंख सुर सेवक जहां ।। तिस जन्म-मंगलकी बड़ाई, कहन समरथ बुध कहां ||७४||
चौपाई। जन्म न्हौन बिधि पूरन भई । सकल सुरासुर देवनि ठई ।। अब इंद्रानी जिनवर अंग । निर्जल कियौ वसन-सुचिसंग ||७५।। कुंकुमादि लेपन बहु लिये । प्रभुके देह विलेपन किये ।। इहि सोभा इस औसरमांझ । किधौं नीलगिरि फूली सांझ ७६।।
और सिंगार सकल सह कियौ । तिलक त्रिलोकनाथके दियौ ।। मनिमय मुकुट सची सिर धस्यौ । चूड़ामनि माथे विस्तस्यौ ।।७७।। लोचन अंजन दियौ अनूप | सहज स्वामिदृग अंजितरूप ।। मनि कुंडल कानन विस्तरे । किधौं चंद सूरज अवतरे |७८।। कंठ कंठिका मोतीहार | मुकता-मनि झूला उनहार ।। भुज-भूषन-भूषित भुज करी । कटक मुद्रिका सोभित खरी ॥७९॥ कटिभूषन कीनौं कटि-थान । मनिमय छुद्र घंटिकावान ।। पग नेवर पहराये सार । जिनमैं रतन झलक झंकार ||८०||
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