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छठा अधिकार/९९
दोहा । अंगअंग आभरनजुत, यह उपमा तिहिं काल || सुरतरु-सम प्रभु सोहिये, भूषनभूषित-डाल ||८१।।
चौपाई। तब इंद्रादि लगे थुति करन । जय जिनवर सब आरत-हरन ।। त्रिभुवन-भवन-दीप उनहार । धन्य देव तेरो अवतार ।।८२|| जय श्रीअस्वसेन कुलचंद । वामानंदन जोति अमंद || सुखसागरके वर्धनहार | सब जग श्रेय-सांति-दातार ||८३|| तुम जग भ्रमनासन अवतरे । हमसे दास महासुख भरे । बिन रवि-उदय तिमिर क्यों जाय | कैसे कमल-बाग विकसाय ||८४|| मिथ्यामत रजनी अतिघोर । मूसैं धर्म कुलिंगी चोर ।। जो प्रभुजन्म-प्रभात न थाय । तो किमि प्रजा बसै सुखपाय ||८५।। ये अनादि संसारी जीव । बिलखें भव-गद-ग्रसे अतीव || सो दुखमैटन दयानिधान | राजवैद जनमै भगवान ||८६|| भरम कूप वरती बहु लोय । काढ़नहार तिन्हैं नहिं कोय || श्रीमुख वचन लेज-बलधार | अब उद्धार लहैं निरधार ||८७।। आप परम पावन परमेस | औरनकौं सुचि करहु विशेष ।। ज्यों सरि सेत प्रभा तन धरै । सेत सरूप सबनकौं करै ।।८८|| बिन सनान तुम निर्मल नित्त । अंतर बाहज सहज पवित्त ।। हम मज्जन बिधि कीनी आज । निज पवित्र कारन जिनराज ||८९।। तुम जगपति देवनके देव । तुम जिन स्वयंबुद्ध स्वयमेव ॥ तुम जग रच्छक तुम जगतात । तुम बिनकारन-बंधु विख्यात ।।९०|| तुम गुनसागर अगम अपार । थुतिकर कौन जाय जन पार ।। सूच्छम ग्यानी मुनि नहिं तरै । हमसे मंद कहा बल धरै ।।९१।। नमो देव असरन-आधार | नमो सर्व अतिसय भंडार || नमो सकल सिव-संपति-करन | नमो नमो जिन तारन-तरन ।।९२।।
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