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________________ छठा अधिकार/९७ जोजन एक प्रमान मुख, वसु जोजन गंभीर ।। यह मरजादा कलसकी, जिनशासनमैं बीर ||५९।। मुकतमाल-मंडित लसैं, कंचन-कलस महंत ॥ नभ-वनिताके उरज ये, यों अति सोभावंत ||६०॥ चौपाई। सहस भुजा सुरपति तब करी । भूषन-भूषित सोभा भरी ।। इस औसर हरि सोहै एम | भूषनांग सुरतरुवर जेम ॥६१।। कलस हाथ हरि लीनैं जाम । भाजनांग सम सोभा ताम || तीन बार किनौ जयकार । कलसोद्धारन मंत्र उचार ||६२।। इहिबिध श्रीसौधर्माधीस । ढाले कलस स्वामिके सीस | तब सब इंद्र कियौ जिनन्हौन । अतुल उछाव बढ्यौ जगभौन ।।६३।। महा धार जिनमस्तक ढरी । मानौं नभगंगा अवतरी ।। मुदित असंख अमरगन तबै । जैजैकार कियौ मिलि सबै ।।६४।। उपज्यौ अति कोलाहल सार । दसदिस बधिर भईं तिहिं बार || भयौ असम औसर इहिं भाय । वचनद्वार बरन्यौ नहिं जाय ॥६५।। _दोहा । जा धारासौं गिरि सिखर, खंड खंड हो जाय || सो धारा जिनदेहपै, फूल-कली सम थाय ||६६।। अप्रमान वीरजधनी, तीर्थंकर प्रभु होय ।। तातै तिनकी सकतिकौं, उपमा लगै न कोय ||६७।। नीलबरन प्रभु देहपर, कलस-नीरछबि एम || नीलाचल-सिर हेमके, बादल बरसैं जेम ||६८।। चली न्हौनतै नीरकी, उछल छटा नभमाहि ।। स्वामिसंग अघ बिन भई, क्यों नहिं ऊरध जाहि ॥६९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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