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छठा अधिकार/९५
वसु मंगलदरव विभूति सार | दिस दिव्यकुमारी अग्रचार || इहिबिध सौधर्मसुरेसनार । आन्यौ सिवकन्या-वर कुमार ||३६।। देख्यौ हरि बालकचंद जाम | आनंद-जलधि उर बढ्यौ ताम || सिर नाय इंद्र निज बार बार । थुति कीनी कर जुग सीस धार ॥३७॥ छबि देखि तृपति नहिं होय लेस । तब सहस आंख कीनी सुरेस ।। करि नमस्कार निजगोद लीन्ह । ईसान इंद्र सिर छत्र दीन्ह ||३८॥ तहाँ सनतकुमार महेंद्र सोय । ए चामर ढालैं इंद्र दोय ।। ब्रह्मादि सुरगवासी सुरेस । जय नंद वर्ध बोलैं विसेस ||३९॥ नाचैं सुर-रमनी रूपखान । गंधर्व करें जिन सुजस गान ।। सुरबाजे बाजै बहुप्रकार | कर धरहिं किन्नरी बीन सार ॥४०॥ केई सुर श्रीजिन सुभग भेष | देखें भरि लोचन निर्निमेष ॥ केई यौं भाषै सुर समाज | हम देव-जन्म-फल लह्यौ आज ||४१।। केई सरधायुत भये देव । मिथ्यात महाविष वम्यौ एव ।। इस भांति चतुरबिध देवसंघ । सब चले जोतिषी-पटल लंघ ।।४२।।
दोहा । जोजन सहस निन्यानवै, सुरगिरि-सिखर उतंग ॥ गये सकल सुरगन तहां, भूषन-भूषित अंग ||४३।।
चौपाई। महामेरुके मस्तक-भाग | पांडुकबन बहु धरै सुहाग | जोजन सहस जासु विस्तार | सुर चारन खग करें बिहार ||४४।। चहुंदिसि चार जिनालय तहां । सघन सासते तरुवर जहां ।। मध्यचूलिका मुकट सरीस । सो उतंग जोजन चालीस ।।४५।। बारह जोजन जड़ विस्तार | आठ मध्य अर ऊपर चार || जाके ऊपर रजक विमान । रोमांतर नरछेत्र प्रमान ॥४६॥
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