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छठा अधिकार/९३
परिवार सहित सब इंद्रनाम । आये मिलि प्रथम सुरेंद्र-धाम || नानाविध बाहन चढ़े जेह । जिन-भगति-सलिल-सिंचत सुदेह ।।१२।। सप्तांग सैन तब चली एम । यह महा-जलधिकी लहर जेम ।। हाथी रथ पायक वृषभ बाज । गायनि नर्तकि सेना-समाज ||१३|| एकेक सैनमैं सात कच्छ । तिहि माहिं प्रथम चउ असी लच्छ ।। फिर दुगुन दुगुन सात लों जान । इस भांत सात सेना महान ।।१४।। सौ कोर और छैकोर जोरि । अठसठ्ठ लाख ऊपर बहोरि ।। यह एकहस्ति सेना प्रमान । ऐसी ही सब सातौं समान ||१५|| .. तहँ नागदंत सुर आभियोग | सो करह विक्रिया निजनियोग ।। ताप्रति आग्या दीनी सुरिंद । तिन कीनौं ऐरावत गइन्द ।।१६।। लख जोजन मान मतंगईस । अति उन्नत देह उतंग सीस || सुभ सेत-वरन मन-हरन काय । लीलागति धारै ललित पाय ||१७|| मद-जीवन-कलित कपोल स्याम । नख विद्रुमवरण मनोभिराम ।। सब लसत सुलच्छन अंग अंग । नहिं गिनी जाहिं जिस छबितरंग ||१८|| गंभीर घनाघनघोष जास | बहु सुंदर सुंड सुगंध सांस || सो कामसरूपी कामगौन | जा देखें मोहत तीन भौन ।।१९।। घनघोरत घंटा लंबमान | माने घंघरमाला कंठथान ।। सोवनपाखर' (?) सो दिपै देह । संपाजुत मानौं सरद-मेह ।।२०।। सौ वदन विराजत सोभवंत । एकेक वदनमैं आठ दंत ।। प्रतिदंत सरोवर एक दीस । सरसरहँ कमलिनी सौ पचीस ।।२१।। एकेक कमलिनी प्रति महान | पच्चीस मनोहर कमल ठान || प्रतिकमल एकसौ आठ पत्र । सोभा वरनी नहिं जाय तत्र ||२२।। पत्रनपर नाचें देवनारि । जग मोहत जिनकी छबि निहारि ।। नव नवरस पोर्षे करत गान । लावन्य-जलधि-बेला समान ।।२३।।
१ सोवनपातर = स्वर्णपात्र
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