________________
९२/पार्श्वपुराण छठा अधिकार
श्री जिनेन्द्र जन्मोत्सव वर्णन |
दोहा। रागादिक जलसौं भस्यौ, तन तलाब बहु भाय ।। पारस-रवि दरसत सुखै, अघ-सारस उड़ि जाय ||१|| गर्भ मास पूरन भये, नभ निर्मल आकार || पौष मास एकादसी, स्याम पच्छ सुभ बार ||२|| वामादेवी-पूर्व-दिसि, जनम्यौ जिनवर-भान ।। मुदित भयौ त्रिभुवन-कमल, असुभ तिमिर-अवसान ।।३।। अस्वसेन नृप उदयगिरि, उगयौ बाला दिनेस || तीन ग्यान-किरनावली, लिये जगत परमेस ||४||
पद्धड़ी जनम्यौ जब तीर्थंकर कुमार | तिहुँ लोक बढ्यौ आनँद अपार || दीखै नभनिर्मल दिसि असेस । कहिं आंधी मेह न धूलि लेस ।।५।। अति सीतल मंद सुगंधि वाय । सो बहन लगी सुख सांति-दाय ।। सब सुजन लोक हरषे विसेस । ज्यों कमल-खंड प्रगटत दिनेस ||६|| घंटा घन गरजे देवलोक । ज्योतिषिघर केहरि-नाद थोक || भवनालय बाजे सहज संख । बिंतर-निवास भेरी असंख ||७|| ये अनहद बाजे बजे जान । जिनराज-जनम अतिसय महान ।। बहु कलपतरोवर पहुपवृष्टि | स्वयमेव करन लागे विसिष्ट ||८|| इंद्रासन कांपे अकसमात | ये करन किधौं सारथ (?) सुजात || जिन जनम भयौ भूलोकमाहिं । उच्चासन अब तुम जोग नाहिं ।।९।। आनम्र भये मनि-मुकुट एम | श्रीजिन प्रति करत प्रनाम जेम ।। ये चिहन देखि इंद्रादि देव । तब अवधिग्यान-बल जान भेव ।।१०।। निरधार बनारसि-नगर-थान । तीरथपति जनम्यौ आज आन || प्रभु जन्मकल्यानक करन काज | उद्यम आरंभ्यौ देवराज ||११||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org