________________
पाँचवाँ अधिकार/९१
ज्यौं दर्पन प्रतिबिंबसौं, भारी कह्यौ न जाय ॥ त्यों जिनपतिके गर्भसौं, खेद न पावै माय ||१७३।। कलप लतासी लसत अति, जननी छबि-संयुक्त ।। मंदहास कुसुमित भई, अब फलिहै फल पुत्त ||१७४।। देवराजके वचनसौं, अहनिस हरखत अंग || अलखरूप सेवै सची, लिये अपछरा संग ।।१७५।। पूरबवत नवमास लों, पंचाचरज अनूप || अस्वसेन भूपालघर, किये धनद सुखरूप ।।१७६।। यों सुखसौं निसदिन गये, खेद नाम कहिं नाहिं ।। यह सब पुन्य-प्रभाव है, यही रहस इसमाहिं ।।१७७।। इतिश्रीपार्श्वपुराणभाषायां गर्भावतारवर्णनं नाम
पञ्चमोऽधिकारः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org