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८६/पार्श्वपुराण
अर्धासन बैठनि दियौ, जोग वचन मुख भास || यों रानी विकसत वदन, बैठी भूपति पास ||११६।। सभालोग तारे विबिध, भूपति चांद-सरूप || श्रीवामादेवी तहां, दिपै चंद्रिकारूप ||११७।। स्वामी सोलह सुपन हम, देखे पच्छिम रैन ।। श्रीमुखतें इनकौ सुफल, कहौ श्रवन-सुखदैन ||११८।। अस्वसेन भूपाल तब, बोले अवधि विचार || एकचित्त करि देवि तुम, सुनो सुपनफल सार ||११९।।
चौपाई। धुरि गजेंद्र-दरसनतें जान । होसी जगपति पुत्र प्रधान || महावृषभ पुनि देख्यौ सोय । जग-जेठो नंदन तुम होय ||१२०।। सेत सिंह-दरसनफल भास । अतुल अनंती सकति-निवास ।। कमलामज्जनौं सुरईस । करै न्हौन कनकाचलसीस ||१२१।। पहुपदाम दो देखीं सार । तिसफल दुबिध धर्मदातार || ससितै सकल लोक सुखदाय । तेजपुंज सूरजतै थाय ||१२२।। मीन जुगलसैं सब सुखभाज | कुंभ विलोकन" निधिराज ।। सरवरतैं सब लच्छनवान | सागरतें गंभीर महान ||१२३।। सिंहपीठतें मृगलोचनी । होय बाल तुम त्रिभुवनधनी ।। सुरविमान देख्यौ सुख पाय | सुरगलोकतै उपजै आय ||१२४।। नागराज-गृहको सुन हेत । जनमै मति-सुति-अवधि समेत || रतनरासिसैं गुन-मनि-खान । कर्मदहन पावकतै जान ||१२५।। गजप्रवेस जो वदनमझार | सुपन-अंत देख्यौ वरनार ।। श्रीपारस जिन जगतप्रधान । गर्भ तुम्हारे उतरे आन ||१२६।।
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