SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४/पार्श्वपुराण पद्धडी। सुपनावलि सोलह सुनहु मीत । जिनराज-जनम-सूचक पुनीत ॥ ऐरावत हाथी प्रथम दीस | मदगीलो गंड विसाल सीस ।।९३।। देख्यौ डक्कारत वृषभराज । अति उज्जल मोतीबरन भ्राज ।। देख्यौ पंचानन धवलदेह । निज नाद करै ज्यौं सरद-मेह ||९४।। देख्यौ मनि-आसन सोभमान । तहँ हेमकलस कमला-सनान ।। देखी दो पावन पहुप-माल | भ्रमरावलि-बेढ़ी अतिविसाल ||९५।। रविमंडल देख्यौ तम-दलंत । उदयाचल ऊपर उदयवंत || संपूरन तारापति-विमान । तारावलि-मध्य विराजमान ॥९६।। जलतिरत मनोहर मीन-जोट । देखे जिन-जननी पलकओट || देखे चामीकर कलस दोय । अति झलकै वारिज-ढंके सोय ।।९७।। देख्यौ कमलाकर कमलछन्न । बहु हंसी हंसनसौं रवन्न ।। देख्यौ रयनायर गर्जमान । पुनि सिंहपीठ मानिक-निधान ||९८|| फिर देख्यौ देव-विमान जोग । धुज घंटा झालरसौं मनोग ।। प्रगट्यौ महि फोरि फनींद्रधाम । मनि कंचनमय नयनाभिराम ।।९९।। पुनि रतनरासि देखी अनूप । इंद्रायुध-वरन विचित्र रूप ।। निर्धूम धनंजय दीपमान । ये देखे सोलह सुपन जान ||१००। दोहा । गजप्रवेस मुखकमलमैं, सुपनअंत अविलोय || सुखनिद्रा पूरी भई, भयौ प्रात तम खोय ||१०१।। पूर्व दिवाकर ऊगयौ, गयौ तिमिर सुखदाय || जैसे जैन-सिधांत सुनि, भरमभाव मिट जाय ||१०२।। मंद तेज तारे भये, कछु दीखें कछु नाहिं ।। ज्यों तीर्थंकरके उदय, पाखंडी छिप जाहिं ।।१०३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy