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८२/पार्श्वपुराण
नखसिख सहज सुहागिनि नार । तीन-लोक-तिय-तिलक सिंगार || सकल सुलच्छन-मंडित देह । भाषा मधुर भारती येह ||७२।। रंभा रति जिस आगे दीन । रोहि-निरूप लगै छबि छीन ।। इंद्रबधू इमि दीसै सोय । रवि-दुति आगे दीपक-लोय ||७३।। जन-मन-हरष बढ़ावन एम | कातिक-चंद्र-चंद्रिका जेम ।। सकल सार गुनमनिकी खानि । सील संपदाकी निधि जानि ।।७४|| सज्जनताकी अवधि अनूप । कला सुबुधिकी सीमारूप ॥ नाम लेत अघ तजै समीप । महापुरुष-मुक्ताफल-सीप ||७५।। त्रिभुवन-नाथ रत्नकी मही । बुधिबल महिमा जाय न कही ।। बहुबिध दंपति संपतिजोग | करैं पुनीत पुन्य-फल भोग ||७६।।
उक्तं च षट्पाहुड़ग्रन्थे आर्या ।। तित्थयरा तप्पियरा हलहर चक्काइं वासदेवाइं ।। पडिवास भोयभूमिय आहारो णत्थि णीहारो ||७७॥
चौपाई। जिनवर जिनमाता जिनतात । बासदेव बलदेव विख्यात ।। चक्रीराय जुगलिया जोय । इन सबके मल-मूत्र न होय ||७८।।
दोहा । पूरब गाथाको अस्थ, लिख्यौ चौपई लाय || षट्पाहुइटीकाविषै, देख लेहु इहि भाय ||७९।।
चौपाई। अब आगे भविजन मन थंभ | सुनो गर्भ-मंगल आनंद ।। एक दिना सौधर्म सुरेस । धनपति प्रति दीनौं उपदेस ||८०|| आनतेंद्रकी थितिमैं सही । आयु छ मास शेष सब रही ।। तेबीसम अवतार महान । होसी नगर बनारस-थान ।।८१।।
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