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पाँचवाँ अधिकार/७९
ऊँचे परवत झरना झरें । मारग जात पथिक मन हरै ।। जिनमैं सदा कंदराथान । निहचल देह धरै मुनि ध्यान ||३६|| जहां बड़े निर्जन बन-जाल । जिनमैं बहुबिध बिरछ विसाल || केला करपट कटहल कैर । कैथ करोंदा कौंच कनैर ||३७।। किरमाला कंकोल कल्हार | कमरख कंज कदम कचनार ।। खिरनी खारक पिंडखजूर । खैर खिरहटी खेजड़ भूर ||३८।। अर्जुन अमली आम अनार | अगर अंजीर असोक अपार || अरनी औगा अरलू भने | ऊंबर अंड अरीठा घने ||३९।। पाकर पीपल पूग प्रियंग । पीलू पाटल पाढ़ पतंग ।। गौंदी गुड़हल गूलर जान | गांडर गुंजा गोरख पान ||४०।। पंचा चीढ़ चिरोंजी फली । चंदन चोल चमेली मली ।। जंड जंभीरी जामन कोट । नीम नारियल हीस हिगोट ||४१।। सौना सीसम सेभल साल । सालर सिरस सदा फलजाल ।। बांस बबूल बकायन बेर | बेत बहेड़ा बड़हल पेर ।।४२।। महुआ मौलसिरी मचकुंद ! मरुवा मोखा करना कुन्द ।। तूत तबोलनि तींदू ताल । तगर तिलक तालीस तमाल ||४३।। इहि बिघ रहे सरोवर छाय । सबही कहत कथा बढ़ जाय ।। तहां साधु एकांत विचार | करैं पठन-पाठन-विधि सार ||४४|| बिबिध सरोवर सीतल ठाम | पंथी बैठि लेहिं बिसराम || निर्मल नीर भरे मनहार | मानौं मुनिचित विगत विकार ||४५|| सोहैं सफल सालके खेत । भये नम्र फल-भार समेत || सज्जनजन ज्यों संपति पाय | छोड़ गुमान चलैं सिर नाय ||४६।। केवलग्यानी करत विहार | जहां सदा सब सुख-दातार || अचारज चहु-संघ समेत । विहरमान भविजन हितहेत ॥४७॥ केई जहां महाव्रत लेहिं । भव-दुखवास जलांजलि देहिं ।। केई धीर उग्र तप करें । ते अहिमिंद्र जाय अवतरै ॥४८॥
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