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________________ चौथा अधिकार/७३ हम विनती सुनिये सुरराज । जीवन जनम सफल सब आज || अब सनाथ स्वामी हम भये । जनम जोगतै पावन थये ||२११।। सूरज उदय कमलिनी-बाग । विकसै जथा जग्यौ सिर भाग ।। नन्द वर्ध हम देहिं असीस । चिर यह राज करौ सुरईस ||२१२।। अहो नाथ यह उत्तम ठाम । सुरग तेरमो आनत नाम ।। जगतसार लछमीको येह । निरुपम भोग निरंतर गेह ॥२१३।। तुम इहि थान इन्द्र अवतरे । पूर्वजन्म दुद्धर तप धरे ।। ये सब सुर सेवक तुम तनें । ये परिवार लोक हैं घनें ।।२१४।। ये मनोग वनिता मंडली । तुम आदेस चहै मनरली ॥ ये पटदेवी लावनखान | सब देवीं इन मार्ने आन ||२१५।। ये विमान पुर महल उतंग । चमर छत्र सेना सप्तंग ।। धुजा सिंहासन आदि मनोग | सकल सम्पदा यह तुम जोग ।।२१६।। ऐसे वचन अनन्तर तबै । जान्यौ इन्द्र अवधिबल सबै ।। मैं पूरव कीनौं तप घोर । दंडे करम धरम-धन-चोर ||२१७।। जीवजातकौं निर्भयदान | दीनौं आप बराबर जान || सब उपसर्ग सहे धरि धीर | जीत्यौ महाराग रिपु वीर ||२१८।। काम विषम वैरी वस कियौ । अरु कषाय बनकौं जारियौ ।। जिनवर-आन अखंडित पोष । चारित चिर पाल्यौ निरदोष ||२१९॥ इहि विध सेयौ धर्म महान । तिस प्रभाव दीखै यह थान || दुरगति-पात निवारन करौ । तिन मुझ इंद्रलोक ले धरौ ।।२२०।। सो अब सुलभ नहीं इस देह । भोग जोग है थानक येह ।। रागआग दुखदायक सदा | चारितजल बिन बुझै न कदा ||२२१॥ सो कारन सुरगतिमैं नाहिं । व्रतको उदय न या पदमाहिं ॥ . ह्यां सम्यकदरसन अधिकार | संकादिक मल वरजित सार ||२२२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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