________________
चौथा अधिकार/५७
ज्यों जांचत सुख कलपतरु; दानी जनकौं देय ।। त्यों अचेत यह देत है, पूजककौं सुख श्रेय ||४५।। मनि मंत्रादिक ओषधी, हैं प्रतच्छ जड़रूप । विष रोगादिककौं हरै, त्यों यह अघहर भूप ||४६॥ जड़-सरूपको पूज पद, प्रगट देखिये लोय | राजपत्र सिर धारिये, मुद्राअंकित होय ||४७।। राजपत्र सिर धारिये, राजाको भय मानि । जिनवर-मुद्रा पूजिये, पातक-कौ डर जानि ||४८|| प्रतिमा पूजन चिंतवन, दरसन आदि विधान । हैं प्रमान तिहुँ कालमैं, तीन लोकमैं जान ||४९।। जे प्रतिमा पूजें नहीं, निंदा करें अजान । तीन लोक तिहुंकालमैं, तिनसम अधम न आन ||५०|| जे प्रतिमा पूजें सदा, भाव-भगति-विधि-सुद्धि । तिनको जनम सराहिये, धन तिनकी सदबुद्धि ||५१|| इत्यादिक उपदेस सुनि, आई उर परतीत | जिन-प्रतिमा पूजन वि, धरी राय दिढ़ प्रीत ||५२।।
चौपाई। तिस औसर मुनि बरनै ताम | तीन भवन-वरती जिनधाम ।। भानु-विमान विषै जिनगेह । सो पहले बरनै धरि नेह ||५३।। रतनमई प्रतिमा जगमगै । कोट भानु छबि छीनी लगै ॥ निरुपम रचना विविध विसाल | सूरजदेव नमैं तिहुँ काल ||५४।। सुन आनंदी आनंदराय । विकसत आनन अंग न माय ।। जब संदेहसल्य निरबरै ।तब अवस्य उर सुख विस्तरै ।।५५।। प्रात सांझ मंदिर चढ़ि सोय । अर्घ देय रवि सम्मुख होय || . करि जिनबिंबनको मन ध्यान । अस्तुति करै राग मन आन ||५६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org