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तीसरा अधिकार/४९
बाय-पित्त-कफ-जनित जे, रोगजात जावंत । तिन सबहीको नरकमैं, उदय कह्यौ भगवंत ||१९४।। कटुतुंबी सौ कटुक रस, करवतकी सी फांस | जिनकी मृत मंजारसौं, अधिक देहदुरबास ।।१९५।। जोजन लाख प्रमान जहँ, लोह-पिंड गल जाय । ऐसी ही अति उसनता, ऐसी सीत सुभाय ||१९६।।
अडिल्ल छंद। पंक-प्रभा परजंत उसनता अति कही । धूम-प्रभामैं सीत उसन दोनौं सही ।। छठी सातमी भूमि न केवल सीत है । ताकी उपमा नाहिं महा विपरीत है ||१९७।।
दोहा । स्वान स्यार मंजारकी, पड़ी कलेवर-रास । मास वसा अरु रुधिरको, कादौ जहां कुबास ||१९८॥ ठाम ठाम असुहावने, सेभल तरुवर भूर | पैनैं दुखदैनै विकट, कंटक-कलित करूर ||१९९।।
और जहां असिपत्र बन, भीम तरोवर खेत । जिनके दल तरवारसे, लगत घाव करदेत ॥२००|| वैतरिनी सरिता समल, लोहित लहर भयान | बहै खार सोनित भरी, मांसकीच घिन घान ||२०१।। पंछी वायस गीधगन, लोहतुंडसौं जेह । मरम विदारै दुख करें, चूंटै चहुँदिस देह ।।२०२।। पंचेंद्री मनकौं महा, जे दुखदायक जोग | ते सब नरक-निकेतमैं, एकपिंड अमनोग ॥२०३।। कथा अपार कलेसकी, कहै कहां लौं कोय । कोड़ जीभसौं बरनिये, तऊ न पूरी होय ||२०४||
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