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तीसरा अधिकार/४७
कुंत कृपान कमान सर, सकती मुगदर दंड | इत्यादिक आयुध विबिध, लिये हाथ परचंड ||१६९।। कहि कठोर दुर्वचन बहु, तिल तिल खंडे काय | सो तबही ततकाल तन, पारे-वत मिल जाय ।।१७०।। काँटेकर छेर्दै चरन, भेर्दै मरम विचारि । अस्थिजाल चूरन करें, कुचलैं खाल उपारि ।।१७१।। चीरे करवत काठ ज्यों, फारै पकरि कुठार | तोड़ें अंतरमालिका , अंतर उदर बिदार ||१७२।। पेलैं कोल्हू मेलकै, पीसैं घरटी घाल । तावै ताते तेलमैं, दहैं दहन परजाल ||१७३।। पकरि पांय पटकै पुहुमि, झटकि परसपर लेहिं । कंटक सेज सुबावहीं, सूलीपर धरि देहिं ।।१७४।। घसैं सकंटक रूखसौं, बैतरनी ले जाहिं । घायल घेरि घसीटिए, किंचित करुना नाहिं ||१७५।। केई रक्त चुवाव तन, विहबल भाजै ताम | पर्वत अन्तर जायके, करें बैठि विसराम ||१७६।। तहां भयानक नारकी, धारि विक्रिया भेख । बाघ सिंह अहि रूपसौं, दारै देह विसेख ||१७७॥ केई करसौं पांय गहि, गिरसौं देहिं गिराय । परै आन दुर्भूमिपर, खंड खंड हो जाय ||१७८।। दुखसौं कायर चित्तकरि, ढूँ. सरन सहाय । वे अति निर्दय घातकी, यह अति दीन घिघाय ||१७९।। व्रण-वेदन नीकी करें, ऐसे करि विस्वास । सींचें खारे नीरसौं, जो अति उपजै त्रास ||१८०।। केई जकरि जंजीरसौं, बैंचि थंभ अति बांधि । सुध कराय अब मारिये, नाना आयुध साधि ।।१८१।।
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