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४२/पार्श्वपुराण
कालसरूप वदन विकराल | वनचर जीवनकौ छयकाल | धनुषबान लीये निज पान । भ्रमै मांसलोभी बन थान ||१०८।। सो पापी चल आयौ तहां । जोगारूढ खड़े मुनि जहां । सत्रुमित्रसौं सम कर भाव । लगे आपमैं सुद्ध सुभाव ||१०९।। कुंकुम कादौ महल मसान | कोमल सेज कठिन पाषान | कंचन काच दुष्ट अरु दास | जीवन मरन बराबर जास ||११०|| निर्ममत्त तनकी सुघि नाहिं । सातौं भय-वरजित उरमाहिं । देखि दिगंबर कोप्यौ नीच | कंपित अधर दसनतल भींच ||१११।। तान कमान कान लौं लई । तीखन सर मास्यौ निरदई । मुनिवर धर्मध्यान आराध | दुखमैं धीरज तज्यौ न साध ||११२।। दरसन-ग्यान-चरन-तप सार | चारौं आराधन चित धार । देहत्याग तब भयो मुनिन्द्र | मध्यम ग्रैवेयिक अहमिंद्र ||११३।। तहँ उत्पादसिला निकलंक | हंसतूलजुत रतन पलंक | उठ्यौ सेज तजि दीपत काय । अल्पकालमैं जोबन पाय ||११४|| देखै दिसि अति विस्मयरूप । महा मनोग विमान अनूप | अतुल तेज अहमिंद्र निहार । अवधिज्ञान उपज्यौ तिहिं बार ।।११५।। जान्यौ सब पूरब-भवभेव । चारित बिरछ फल्यौ सुखदेव । अनुपम आठौं दरब सँजोय । रतनाबिंब पूजे थिर होय ||११६।। आयौ सुर हर्षित निजथान । महारिद्धि महिमा असमान | तीन-भवन-वरती जिनधाम । भावभक्ति नित करै प्रनाम ||११७।। तीर्थंकर केवलि-समुदाय | निजथानक-थित पूजै पाय | पंचकल्यानक काल विचारि प्रनमै हस्तकमल सिरधारि ||११८।।
दोहा । अनाहूत अहमिंद्रगन, आ3 सहज सुभाय । धर्मकथा जिनगुन-कथन, करें सनेह बढ़ाय ||११९।।
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