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३६/पार्श्वपुराण
चौपाई। प्रथम कालनिधि सुभ आकार | सो अनेक पुस्तक दातार | महाकाल निधि दूजी कही । याकी महिमा सुनियौ सही ||३५|| असि मसि आदिक साधन जोग | सामग्री सब देय मनोग | तीजी निधि नैसर्प महान | नाना विध भाजनकी खान ||३६॥ पांडुक नाम चतुरथी होय । सब रसधान समप्पै सोय । पदम पंचमी सुक्रतखेत । वांछित वसन निरंतर देत ||३७|| मानव नाम छठी निधि जेह । आयुधजात जन्मभू देह । सप्तम सुभग पिंगला नाम | बहुभूषन आपै अभिराम ||३८।। संख निधान आठमी गनी । सब वाजित्र-भूमिका बनी । सर्वरत्न नवमी निधि सार । सो नित सर्वरत्न-भंडार ||३९।।
दोहा । ये नौनिधि चक्रे-सकै, सकटाकृत संठान । आठ चक्र संजुक्त सुभ, चौखूटी सब जान ||४०॥ जोजन आठ उतंग अति, नव जोजन विस्तार | बारह मित दीरघ सकल, बसैं गगन निरधार ||४१।। एक एकके सहस मित, रखवाले जखदेव । ये निधि नरपति पुन्यसौं, सुखदायक स्वयमेव ।।४२||
चौपाई। प्रथम सुदरसन चक्रपसत्थ । छहों खंड साधन समरत्थ । चंडवेग दिढदंड दुतीय । जिस बल खुलै गुफा गिरिकीय ।।४३।। चर्मरत्न सो तृतिय निवेद । महा वज्रमय नीर अभेद । चतुरथ चूडामनि मनि-रैन । अंधकार-नासक सुखदैन ||४४।। पंचम रत्न काकिनी जान । चिंतामनि जाकौ अभिधान | इन दोनोंतें गुफा मँझार | ससिसूरज लखिये निरधार ||४५।। सूरजप्रभ सुभ छत्र महान । सो अति जगमगाय ज्यों भान । सौनंदक असि अधिक प्रचंड । डरै देखि बैरी बलबंड ||४६।।
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