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३४/पार्श्वपुराण
ऐसे वच पियके अवधारि । अति आनंद भयौ नृपनारि । अचुत स्वर्गतै सो सुर चयो । वज्रनाभि नामा सुत भयौ ||११|| चौसठ लच्छन लच्छित काय । पुन्य-जोग जिमि उतस्यौ आय ! जनम महोच्छव राजा कियौ । जिन पूजे जाचक धन दियौ ।।१२।। बढ़े बाल जिमि बालक-चंद । सुजन लोक लोचन सुखकंद । क्रमक्रमसौं सिसु भयौ कुमार । पढ़ लीनी विद्या सब सार ||१३|| जोबनवंत कुमर जब भयौ । निर्मल नीतिपंथ पग ठयौ । रूप-तेज-बल-बुद्धि-विग्यान | सकल सारगुन-रत्न-निधान ||१४|| कीनी पिता ब्याहविधि जोग । राजसुता बहु बरी मनोग । क्रमकरि कुमर पितापद पाय | राज करै थुति करिय न जाय ।।१५।। पुन्य जोग आयुध-गृह जहां । चक्र-रतन वर उपज्यौ तहां । छहोखंडवरती भूपाल । बस की. नाये निजभाल ||१६।। देव दैत्य विद्याधर नये । नृप मलेच्छ सब सेवक भये । बढ़ी संपदा पुन्य सँजोग । इन्द्र समान करै सुख भोग ।।१७।।
दोहा ।
संपूरन सुख भोगवै, वज्रनाभि चक्रेस । तिस विभूतिबल बरनऊं, जथासकति लवलेस ।।१८।।
चौपाई। सहस बतीस सासते देस | धन कन कंचन भरे विसेस । विपुल बाढ़ बेढ़े चहुंओर । ते सब गांव छानवै कोर ||१९|| कोट कोट दरवाजे चार । ऐसे पुर छब्बीस हजार | जिनकौं ल- पांचसौं गांव । ते अटंब चउ सहस सुटांव ।।२०।। पर्वत और नदीके पेट । सोलह सहस कहे वे खेट | कर्वट नाम सहस चौवीस । केवल गिरिवर बेढ़े दीस ।।२१।। पत्तन अड़तालीस हजार । रतन जहां उपजै अति सार | एकलाख द्रोणीमुख वीर | सहस घाट सागरके तीर ||२२||
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