SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा अधिकार वज्रनाभ अहमिन्द्र सुख भिल्ल नरक दुःख वर्णन । दोहा अस्वसेन-कुल-कमलरवि, वामाकुँवर कृपाल | बंदौं पारस-चरन-जुग, सरनागत-प्रतिपाल ||१|| चौपाई। जंबूदीप बसै चहुफेर | जाके मध्य सुदर्सन मेर । कंचन-मनि-मय अतुल सुहाग | ता पर्वतके पच्छिम भाग ।।२।। अपर-विदेह विराजै खेत । सो नित चौथे काल समेत । पदपद जहां दिपैं जिनधाम | नहीं कुदेवनको विसराम ||३|| जैनजतीजन दीखें सोय । नहीं कुलिंगी दीखै कोय । उत्तम धर्म सदा थिर रहै । हिंसा धर्म प्रकास न लहै ।।४।। तीनौं वरन बसैं जहां लोय । ब्राह्मन-वरन कभी नहिं होय । तामैं पदमदेस अभिराम । सोहै नगर अस्वपुर नाम ||५|| तहां वज्जवीरज भूपाल | न्यायै प्रजा करै प्रतिपाल | गुननिवास सूरजसम दिपै । आन भूप उडगन-छबि छिपै ।।६।। विजया नामैं नरपति-नारि । रूपवंत रतिकी उनहारि । पटरानी सबमैं परधान, पूरब पुन्य-उदय गुणखान ||७|| एक समय निसि पच्छिम जाम | पंच सुपन देखे अभिराम | मेरु दिवाकर-चंद्र-विमान | सजल सरोवर सिंधु समान ||८|| प्रात भये आई पियपास | विकसत लोचन हिय हुलास । रातसुपन अवलोके जेह । नृप आगें परकासे तेह ।।९।। तब नरिन्द बोले बिहसाय | सुंदर वचन स्रवन-सुखदाय । सुनि रानी इनको फल जोय । पुत्र प्रधान तिहारे होय ||१०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy