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३२/पार्श्वपुराण
चौपाई। बैर भाव उरतें नहि टस्यौ । फेरि आय अजगर अवतस्यौ ।। संसकारवस आयौ तहां । हिमगिरि गुफा मुनीसुर जहां ।।८१|| गिले साधु संजमधर धीर । समभावन" तज्यौ सरीर ।। लीनौं स्वर्गसोल बास । जो नित निरुपम भोग-निवास ||८२|| जन्म-सेजतें जोबन पाय । उठ्यौ अमर संपूरन काय || देखि संपदा विस्मय भयौ । अवधि होत संसै सब गयौ ।।८३।। पूजा करी जिनालय जाय | भक्ति-भाव-रोमांचित काय || पूरव-संचित पुन्य-संजोग | करै तहां सुर वांछित भोग ||८४|| गये बरस बाईस हजार । भोजन भुंजै मनसाहार ।। तावतमान पच्छ जब जाय । तब ऊसांसौं दिसि महकाय ||८५।। देखै पंचम भू-परजंत । अवधिग्यान-बल मूरतिवंत ।। तितनैं मान विक्रिया करै । गमनागमन हिमैं जब धरै ।।८६।। तीन हाथ अति सुंदर काय । लेस्या सुकल महा सुखदाय ।। थिति सागर बाईस विसाल । इहिविध बीतै सुखमै काल ।।८७।।
. दोहा । आदि अंत जिस धर्मसौं, सुखी होय सब जीव ।। ताकौं तन-मन-वचन-करि, हे नर सेव सदीव ||८८|| इतिश्रीपार्थपुराणभाषायां गजस्वर्गगमनविद्याधरभवविद्युत्प्रभदेवभववर्णनं नाम
द्वितीयोऽधिकारः ।
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