________________
विद्युतगति भूपाल, न्याय प्रजा प्रतिपालै ॥ नीतिनिपुन धर्मग्य, संत सुमारग चालै ॥६९॥
विद्युतमाला नांव ता घर नारि सयानी ॥
"
मानौं मनमथ जोग, आय मिली रतिरानी ||७०||
तिनकै सो सुर आय, पुत्र भयौ बड़भागी ॥ अगनिवेग तसु नाम, अति सुंदर सौभागी ॥७१॥ सोमप्रकृति परवीन, सकल सुलच्छन-धारी ॥ जिनपदभक्ति पुनीत, सबहीकौं सुखकारी ॥७२॥
राजसंपदा भोग, भुंजत पुन्यनियोगे ॥ एक दिना इन साधु, भेटे भाग संजोगे ||७३ ॥
स्रवन सुन्यौ उपदेस, भर जोबन वैराग्यौ || आसन भव्य कुमार, संजमसौं अनुराग्यौ ॥७४॥
तजि परिग्रह गुरुसाख, पंचमहाव्रत लीनैं | दुद्धर तप आराध, रागादिक कृस कीनैं ||७५ ||
दूसरा अधिकार / ३१
छीन किये परमाद, विचरैं एकविहारी ॥ बारह अंग समुद्र, पार भयौ स्रुतधारी ॥ ७६॥ एक दिवस धरि जोग, हिमगिरि-कंदर माहीं ॥ निवसै आतमलीन, बाहरकी सुधि नाहीं ॥७७॥ दोहा | कुरकट नामा कमठचर, दुष्टनाग दुखदाय || सो मरि पंचम नरकमैं, पस्यौ पापवस जाय ||७८ ||
छेदन भेदन आदि बहु, तहां वेदना घोर || सहस जीभसौं बरनिये, तऊ न आवै ओर ॥७९॥
ऐसे दुखमैं कमट जिय, कीनी पूरन आव || सत्रह सागर भुगतकै, निकस्यौ कूरसुभाव ||८०||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org