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________________ दूसरा अधिकार/२९ अघके भय अंग न हालै । दिढ़ धीर प्रतिग्या पालै ।। चिरलौं दुद्धर तप कीनौं । बलहीन भयौ तन छीनौं ॥४६।। परमेष्ठि परमपद ध्यावै । ऐसें गज काल गमावे ।। एकै दिन अधिक तिसायौ । तब वेगवती तट आयौ ॥४७॥ जल पीवन उद्यम कीधौ । कादो-द्रह कुंजर बीधौ ।। निहचै जब मरन विचारौ । संन्यास सुधी तब धारौ ||४८|| सो कमठ कलंकी भूवो । ता बन कुरकट अहि हूवो ।। तिन आय डस्यो गज ग्याता | यह बैर महादुखदाता ||४९।। दोहा। मरन कस्यौ गजराज तब, राखे निर्मल भाव || सुरग बारवें सुर भयौ, देखौ धर्मप्रभाव ।।५०|| चौपाई। तहां स्वयंप्रभ नाम विमान । ससिप्रभदेव भयौ तिहिं थान || अवधि जोड़ सब जान्यौ देव । व्रतको फल पूरबभव भेव ||५१।। जिनसासन संसौ बहुभाय । धर्मविषै दिढ़ता मन लाय || सदा सासते श्रीजिनधाम । पूजा करी तहां अभिराम ||५२।। महामेरु नंदीसुर आदि । पूजे तहां जिनबिंब अनादि । कल्यानक-पूजा विस्तरै । पुन्यभंडार देव यों भरै ।।५३।। सोलह सागर आयु प्रमान । साढ़े तीन हाथ तन जान ।। सोलह सहस वर्ष जब जाहिं । असन-चाह उपजै उरमाहिं ॥५४।। अनुपम अम्रतमय आहार | मनसौं भुंजै देवकुमार || आठदुगुन पख बीते जास | तब सो लेय सुगंध उसास ||५५।। अवधि चतुर्थ अवनि परजंत । यही विक्रियाबल बिरतंत ॥ अवधिछेत्र जावत परमान । होय विक्रिया तावत मान ||५६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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