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२४/पार्श्वपुराण
चौपाई। एक दिना अरविंद नरिंद । पूंछे कर जुग जोरि मुनिंद ।। भो प्रभु मुझ मंत्री मरुभूत । क्यों नहिं आयौ ब्राह्मनपूत ||११९॥ यह सुनि अवधिवंत मुनिराय । सब बिरतंत कह्यौ समुझाय || राजा मन अति भयौ मलीन । हा मंत्री सज्जनता-लीन ।।१२०।। बरजत गयौ दृष्टके पास । कुमरन लह्यौ सह्यौ बह त्रास ।। होनहार सोई विधि होय । ताहि मिटाय सकै नहिं कोय ||१२१।। यों विचारि मन सोक मिटाय । साधु पूजि घर आये राय ।। यह सुनि दुष्टसंग परिहरो । सुखदायक सतसंगति करो ||१२२।।
छप्पय । तपे तबापर आय, स्वातिजलबूंद विनट्ठी । कमल-पत्र-परसंग, वही मोतीसम दिट्ठी ॥ सागर-सीप समीप, भयो मुक्ताफल सोई । संगतको परभाव, प्रगट देखो सब कोई ॥ यों नीचसंगरौं नीचफल, मध्यमतें मध्यम सही । उत्तम सँजोगतै जीवको, उत्तम फल प्रापति कही ।।१२३।। इतिश्रीपार्श्वपुराणभाषायां मरुभूतिभववर्णनं नाम
प्रथमोऽधिकारः ।
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