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पहला अधिकार/२१
चाल छंद । गजमातो कमठ कलंकी । अघसौं मनसा नहिं संकी ।। भावज वन-करनी रंजो । निज सीलतरोवर भंजो ||८४|| रिपु जीत विजयजस पायौ । अरविंद नृपति घर आयौ ।। जे कर्म कमठने कीनैं । राजा सब ते सुन लीनैं ।।८५|| मंत्री मरुभूति बुलायौ । ताकौं सब भेद सुनायौ ।। कहु विप्र सुधी क्या कीजै । क्या दंड इसै अब दीजै ।।८६।। दुज कहै सरल परिनामी । अपराध छिमा कर स्वामी ॥ जो एक दोष सुन लीजै । ताकौं प्रभु दंड न दीजै ।।८७|| तब भूप कहै सुन भाई । जो निग्रहजोग अन्याई ।। तापै करुना किम होहै । यह न्याय नृपति नहिं सोहै ||८८|| तातें गृह गच्छ सयाने । मत खेद हिमैं कछु आने ॥ ऐसें कह विप्र पठायौ । तिस पीछे कमठ बुलायौ ।।८९।। अति निंदो नीच कुकर्मी । जानो निरधार अधर्मी ॥ राजा अति ही रिस कीनौं । सिर मुंड दंड बहु दीनौं ।।९०।। मुखकै कालोस लगाई । खर रोप्यौ पीर न आई ।। फिर सारे नगर फिरायौ । प्रति बीथी ढोल बजायौ ।।९१।। इस भांति कमठकी ख्वारी । देखें सब ही नर नारी ।। पुरवासी लोक धिकारै | बालक मिलि कंकर मारे ||९२।। यों दंड दियौ अति भारी । फिर दीनौं देश निकारी || जो दीरघ पाप कमाये । ततकाल उदै बहु आये ||९३।।
दोहा । इहि विधि फूल्यौ पाप-तरु, देख्यौ सब संसार || आगे फलहै नरक फल, धिक दुर्विसन असार ||९४||
चौपाई। महादंड भूपति जब दयौ । कमठ कुसील दुखी अति भयौ ।। बिलखत वदन गयौ चल तहां । भूताचलपर्वत है जहां ||९५॥
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