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________________ चौपाई | यह विचार मंत्री मनमाहिं । निज सुत सौंपि रायकी बांहिं || सुगुरु- साखि जिन चारित लियौ । वनोवास आतमहित कियौ ॥६२॥ पहला अधिकार / १९ अब मरुभूति विप्र सुख करै । अहनिस नीतिपंथ पग धरै || राजा प्रीति करै बहु भाय । सोमप्रकृति सबकौं सुखदाय ||६३|| एक समय आपन अरविंद । मंत्री सेनासहित नरिंद | राय वज्रवीरजपर चढ़े । क्रोधभाव उरमैं अति बढ़े ||६४|| पीछे कमठ निरंकुश होय । लग्यौ अनीति करन सट सोय || जो मन आवै सो हठ गहै । 'मैं राजा' सबसौं इम कहै ॥६५॥ एक दिना निज भ्राता नारि । भूषन भूषितरूप निहारि ॥ रागअंध अति विहवल भयौ । तीच्छन कामताप उर तयौ ॥६६॥ महा मलिन उर बसैं कुभाव । दुर्गतिगामी जीव सुभाव ॥ पुत्री सम लघुभ्राता नारि । तहां कुदिष्ट धरी अविचारि ॥६७॥ दोहा | पाप कर्मको डर नहीं, नहीं लोककी लाज ॥ कामी जनकी रीति यह, धिक तिस जन्म अकाज || ६८॥ कामी काज अकाजमैं, हो हैं अंध अवेव || मदनमत्त मदमत्त सम, जरो जरो यह टेव ॥६९॥ पिता नीर परसै नहीं, दूर रहै रवि यार || ता अंबुज मैं मूढ़ अलि, उरझि मरै अविचार ||७० || त्यों ही कुविसनरत पुरुष, होय अवस अविवेक || हित अनहित सोचै नहीं, हियै विसनकी टेक ||७१|| चौपाई | बनमैं सघन लतागृह जहां । गयौ कमठ कामातुर तहां ।। बढ़ी वेदना कल नहिं परै । छिन छिन काम - विथा दुख Jain Education International For Private & Personal Use Only करै ॥७२॥ www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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