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१८/पार्श्वपुराण
इहि विधि पुरसोभा अधिकार | वरनन करत लगै बहुबार || राज करै राजा अरविंद । सोहै मानों स्वर्ग सुरिंद ।।५१।। पालै प्रजा कुमति जिन दली । नीतिबेलमंडित भुजबली || दयाधाम सज्जन गंभीर । गुनरागी त्यागी रनधीर ||५२।। तिस भूपतिकै विप्र सुजान । विस्वभूति मंत्री बुधिवान ।। ताकै तिया अनूदरि सती । रूपसील-गुन-लच्छनवती ।।५३।। दोय पुत्र तिनकैं अवतरे | पापपुन्यकी पटतर धरे ।। जेठो नंदन कमठ कुपूत । दूजो पुत्र सुधी मरुभूत ||५४।।
दोहा । जेठो मतिहेठो कुटिल, लघुसुत सरल सुभाय || विष अम्रत उपजे जुगल, विप्र जलधिके जाय ॥५५।। बड़े पुत्रने भारजा, ब्याही बरुना नाम ।। लघुने बरी विसुन्दरी | रूपवती अभिराम ||५६।।
चौपाई। यों सुख निबसैं बांधव दोय । निज निज टेव न टारै कोय ।। वक्र चाल विषधर नहिं तजै । हंस वक्रता भूल न भजै ।।५७।।
दोहा । उपजे एकहि गर्भसौं, सज्जन दुर्जन येह ।। लोह-कवच रच्छा करै, खांडो खंडै देह ।।५८।।
चौपाई। अति सज्जन मरुभूति-कुमार | नीति-सास्त्रको जाननहार ।। सबकौं इष्ट सकल गुन-गेह । राजा प्रजा करें सब नेह ।।५९।। एक दिना भूपति-मंत्रीस । सेत बाल देख्यौ निज सीस ।। उपज्यौ विप्र-हिमैं वैराग । जान्यौ सब जग अथिर सुहाग ||६०।।
दोहा । जरा मौतकी लघु बहिन, यामैं संसै नाहिं ।। तौ भी सुहित न चिंतनैं, बड़ी भूल जगमाहिं ॥६१।।
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