SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पहला अधिकार मरुभूतिभव वर्णन । चौपाई। जंबूदीप दिपै इह सार | सूरजमंडलकी उनहार ।। मध्य सुमेरु कर्णिकाभास | बने छेत्र दल दीरघ जास ||४१।। तारागन मकरंद मनोग । सुर-नर-संग भ्रमरकुलजोग ।। लवनसमुद्र सरोवस्थान । दीप किधौं यह कमल महान ।।४२।। लच्छ महा जोजन विस्तार | बसै विविध-रचना-आधार ।। दच्छिन भरत धनुष-संटान । पर्वत फणच नदीजुग बान ||४३।। मानों सागरप्रति अनुमानि | तानत तीर छार-जल जानि ।। ऐसी भांति विराजत खेत । छहों खंडमंडित छबि देत ||४४।। पांच मलेच्छ बसै तामाहिं । धर्म कर्म कछु जानैं नाहिं ।। उत्तम आरज-खंड मझार । देस सुरम्य बसै मनहार ||४५।। जनकुल जहां रहैं बहु भांति । पास पास सोहैं पुर-पांति || सरवर नदी सैल उद्यान । वन उपवनसौं सोभामान ||४६।। तहां नगर पोदनपुर नाम | मानों भूमितिलक अभिराम ।। देवलोककी उपमा धरै । सब ही विध देखत मनहरै ।।४७।। दोहा । तुंग कोट खाई सजल, सघन बाग गृह-पांति ।। चौपथ चौक बजारसौं, सोहै पुर बहुभांति ||४८|| ठाम ठाम गोपुर लसैं, वापी सरवर कूप || किधौं स्वर्गने भूमिकौं, भेजी भेट अनूप ||४९।। चौपाई। जैनी प्रजा जहां परवीन । बसै दान-पूजा-व्रतलीन ।। जैनभवन ऊँचे अति बने । सिखर धुजासौं सोभित घने ।।५०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy