________________ ऐसो श्रावक कुल तुम पाय ऐसो श्रावक कुल तुम पाय, वृथा क्यों खोवत हो / कठिन कठिनकर नरभव पाई, तुम लेखी आसान / धर्म विसारि विषयमें राचौ, मानी न गुरुकी आन ||1|| चक्री एक मतंगज पायो, तापर ईंधन ढोयो / बिना विवेक बिना मतिहीको, पाय सुधा पग धोयो / / 2 / / काहू शठ चिन्तामणि पायो, मरम न जानो ताय / वायस देखि उदधिमें फैंक्यो, फिर पीछे पछताय / / 3 / / सात विसन आठों मद त्यागो, करुना चित्त विचारो / तीन रतन हिरदैमें धारो, आवागमन निवारो ||4|| 'भूधरदास' कहत भविजनसों, चेतन अब तो सम्हारो / प्रभुको नाम तरन तारन जपि, कर्मफन्द निरवारो / / 5 / / - भूधरदास Jain Education International fa crepes Poga-34&2028 w ww.jainelibrary.org